मेरी नन्ही अप्सरा
एक पल चंचला,अगले ही पल सहजता,
थिरकती हुई कोमल कोपलों पर, मेरी नन्ही अप्सरा |
तेरे आगमन का रुदन, था मेरे आस्तित्व का पुनर्जन्म,
तेरा प्रथम स्पर्श, धन्य हुआ पाकर वो हर्ष |
देन है तू दातार की, और वरदान गोबिंद का,
मधुर किलकारियों से तेरी, भर गयी रिक्त झोली मेरी |
साँय काल की तेरी प्रतीक्षा, और मेरा कुटिया में लौटना,
स्वार्थ हीन तेरा आलिंगन, जैसे हो शीतलमय चन्दन |
तेरी असीम उत्सुकता, प्रचंड वेग की कोई सरिता,
उत्तर की है आस हर क्षण, नहीं मिला तो भुगतो कोप दंड |
कष्ट माता पिता का, तेरे ललाट की गंभीरता,
विचलित होना मन का तेरे, हर लेता है दुःख सारे |
बाहिष्कार उस समाज का, जो समझते बिटिया को बला,
चाह केवल बाल गोपाल की, बिन राधा कृष्ण-गाथा कैसे पूरी?
अब डूबने दो पितृत्व में, अनंत प्रेम के सिन्धु में,
मथ लाया कुछ रत्न तो, कर दूँगा समर्पित नन्ही अप्सरा को | ‘तरुण’